The Basic Principles Of Shiv chaisa
The Basic Principles Of Shiv chaisa
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वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
शिव पंचाक्षर स्तोत्र
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
सांचों थारो नाम हैं सांचों दरबार हैं - भजन
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कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात Shiv chaisa न काऊ॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
अर्थ: माता मैनावंती की दुलारी अर्थात माता पार्वती जी आपके बांये अंग में हैं, उनकी छवि भी अलग से मन को हर्षित करती है, तात्पर्य है कि आपकी पत्नी के रुप में माता पार्वती भी पूजनीय shiv chalisa in hindi हैं। आपके हाथों में त्रिशूल आपकी छवि को और भी आकर्षक बनाता है। आपने हमेशा शत्रुओं का नाश किया है।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
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